*पहली सुनवाई से 60 दिन के भीतर तय होंगे आरोप, अंतिम सुनवाई से 45 दिन में फैसला*
*न्याय में देरी ही न्याय का हनन है…*
इसी अवधारणा के तहत भारतीय नारिक सुरक्षा संहिता-2023 (वीएनएसएस) में हर प्रावधान के लिए समय सीमा तय की गई है। इससे कोर्ट की प्रक्रिया में चालान से लेकर फैसले तक के लिए समयसीमा तय की गई है। इससे कोर्ट की कार्यवाही में तेजी आएगी और जल्द निर्णय होंगे। कोर्ट को पहली सुनवाई की तारीख से 60 दिन के अंदर आरोप तय करना और अंतिम सुनवाई के बाद अधिकतम 45 दिन में फैसला सुनाना जरूरी किया गया है। पुलिस अव 10 साल या इससे अधिक सजा वाले अपराध में आरोपी को प्रथम 60 दिन तक पुलिस रिमांड पर ले ले सकेगी। पहले प्रथम 15 दिन रिमांड लेने का प्रावधान था। दस साल से कम सजा के मामलों में 40 दिन पुलिस रिमांड ली जा सकेगी जो पूर्व में 15 दिन थी।
नए कानून में हर प्रक्रिया की डेडलाइन तय
*1. आरोप तय करने की समय सीमा…*
कोर्ट में आरोप की पहली सुनवाई की तारीख से 60 दिन के अंदर आरोप तय करना अनिवार्य किया गया है।
इसी तरह साक्षी के साक्ष्य के संबंध में प्रावधान किया गया है कि वह आडियो या वीडियो के माध्यम से साक्ष्य
प्रस्तुत कर सकता है, लेकिन लोक सेवक के लिए ऑडियो और वीडियो अनिवार्य किया गया है।
*2. विशेष परिस्थिति में 15 दिन टाल सकते हैं*
कार्ट में सुनवाई की कार्यवाही जिस दिन समाप्त होगी उस तारीख से 30 दिन के अंदर कोर्ट को अपना फैसला सुनाना होगा। विशेष कारण से निर्णय 15 दिन तक टाला जा सकता है। कोर्ट को 45 दिन में अपना निर्णय सुनाना अनिवार्य किया गया है।
*3. आरोपियों की अनुपस्थिति में भी होगा निर्णय*
अपराध से अर्जित संपत्ति की पहचान वीएनएसएस की धारा 86 के तहत की जाएगी। यदि संपत्ति अपराध अर्जित है तो उसे जब्त किया जाएगा। फरार आरोपी की अनुपस्थिति में धारा 356 के तहत प्रकरण में सुनवाई
और सजा के निर्णय का प्रावधान किया गया है।
*4. लंबित प्रकरण में चार्ज नए कानून के तहत..*
कोर्ट में लंवित ऐसे प्रकरण जिनमें 30 जून तक आरोप नहीं लगा है उसका विचारण बीएनएसएस से होगा। इसी तरह 01 जुलाई या उसके वाद प्रस्तुत चालान में विचारण बीएनएसएस से होगा, अपराध भले ही पुराने कानून के दायरे में हुआ हो।
*5. आरोपी को मौका, केस चलने योग्य है या नहीं*
नए कानून में अभियुक्त को मौका मिलेगा है कि वह मजिस्ट्रेट कोर्ट में चालान पेशी के 60 दिन के भीतर यह आवेदन कर सकता है कि केस चलने योग्य नहीं है। पहले सिर्फ कोर्ट अपने विवेक का इस्तेमाल कर खुद तय करती थी कि मामले को विचारित किया जाना चाहिए या नहीं।
*6. धारा 144 (क) का प्रावधान नहीं किया…*
सीआरपीसी की धारा 144 (क) का नए कानून में प्रावधान नहीं किया गया है। धारा 144 (क) में प्रावधान था कि किसी भी धार्मिक या सामाजिक जुलूसों में हथियार लेकर निकलने पर कलेक्टर से अनुमति आवश्यक होती थी। नए कानून में इसे हटा दिया गया है।